Fair facts: वो 3 घटना, जिनसे indian cricket में पैसा बरसने लगा
यह खबर कि t 20 विशव कप जीतने वाली टीम को बीसीसीआई द्वारा 125 करोड रुपए की पुरस्कार राशि दी जाएगी, एक बार फिर याद दिलाती है की खेल अब कितना बदल गया है। 1950 और 60 के दशक में, भारतीय टेस्ट खिलाड़ी को प्रति मैच 250 रुपए का भुगतान किया जाता था। एक बार जब भारत ने न्यूजीलैंड को एक मैच में तीन दिनों में हरा दिया, तो खिलाड़ियों को केवल 150 रुपए दिए गय। कारण, खिलाड़ियों के साथ दिहाड़ी मजदूरों जैसा व्यवहार किया गया था और पांच दिवसीय मैच के दो दिन पहले समाप्त होने पर बोर्ड ने 100 रुपए काट लिए थे। 1983 में जब भारत ने पहली बार विश्व कप जीता, तब कपिल देव की टीम के खिलाड़ियों को 20,000 रुपए दिए गए थे। उस समय लता मंगेशका ने एक संगीत समारोह आयोजित किया था, जिसकी आय भी खिलाड़ियों को दी गई। लेकिन उसको मिलाकर भी राशि खिलाड़ियों और यहां तक की सहयोगी स्टाफ को भी आज मिलने वाले करोड़ों के आस पास भी नहीं थी।
खिलाड़ियों पर होने वाले पैसे की बारिश यकीनन तब और अब के भारतीय क्रिकेट में आय सबसे बड़ा परिवर्तन है। बात केवल अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की ही नहीं है, जिनके पास करोड़ों के अनुबंध और कई अन्य लाभ है, घेरेलू खिलाड़ी भी अब अच्छी कमाई कर रहे है। उद्धरण के लिए रणजी ट्रॉफी के लिए बीसीसीआई मैच फीस के रूप में प्रतिदिन 40000 से 60,000 रुपए के बीच भुगतान करता है। ऐसे में पूरे घेरेलु सत्र में खेलने वाला खिलाड़ी 30 से 40 लाख रूपए कमा सकता है। इसकी तुलना 1960 के दशक के रणजी खिलाड़ी से करे, जिन्हे प्रति मैच 10 रुपए का भुगतान किया जाता था। उस पीढ़ी के खिलाड़ियों के लिए sbi या टाटा में नौकरी ही जीवन रेखा थी।
भारतीय क्रिकेट में इस करोड़पति राज को लाने वाले तीन निर्णायक क्षण है। नि: संदेह, पहला 1983 की जीत थी, जिसके सिर्फ 4 साल बाद विश्व कप इंग्लैंड की धरती से बाहर भारत में खेला गया। दूसरा मोड़ 1990 के दशक की शुरुआत में आया, जब आर्थिक उदारीकरण और उपभोगताओ की तादात उछल के साथ साथ ओपन स्काई की नीति भी आई, जिसने सैटेलाइट टेलीविजन की शुरुआत करी। इसने खिलाड़ियों को अपना ब्रांड वैल्यू का दोहन करने में सक्षम बनाया। विशेष रूप से सचिन तेंदुलकर टीवी पर विभिन्न उत्पादों के लिए विज्ञापन शुभंकर बन गए। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण बदलाव 2008 में आया, अब ipl की शुरुआत हुई। भारतीय क्रिकेट अब एक वैश्विक घटना बन गया था। आज सभी ipl टीमों की कीमत अरबों में है और यह अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्पोर्ट्स लीग बन गई है।
आश्वस्त करने वाली बात यह है की क्रिकेट की तेजी से हो रही वृद्ध का धीरे धीरे सभी खेलो पर कई गुना असर हो रहा है। हमारे 2024 के ओलंपियन भी अब अपने पूर्वविर्तियो की तुलना में बेहतर वेतन और प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। जय शाह की अगुई वाली बीसीसीआई पर बहुत कुछ गर्व किया जा सकता है, खासकर जिस तरह से उसने पिछले कुछ सालों में महिला क्रिकेट का समर्थन किया है और महिला क्रिकेट के लिए समान वेतन और महिला प्रीमियर लीग की स्थापना की है।
इसके बावजूद बीसीसीआई एक सख्ती से नियंत्रित की जाने वाली अपारदर्शी संस्था बना हुआ है, जिसका प्रबंध राजनीतिक से वेल कनेक्टेड अधिकारियों के समूह द्वारा किया जाता है। उनके पास बहुत कम जवाबदेही है और खेल पर जरूरत से ज्यादा प्रभाव है। बीसीसीआई भारतीय क्रिकेट का संरक्षण है, लेकिन वह उसका मालिक नहीं है और वह ipl जैसी वायवसाहिक फ्रेंचाइजी भी नहीं है। उससे खेल की बेहतर परंपराओं को बढ़ावा देने की उम्मीद की जाती है, जिसमे खिलाड़ियों और प्रशासकों के बीच भूमिकाओं का स्पष्ट विभाजन हो। जब बोर्ड के अधिकारी इंडिया चैंपियन tshirt पहने हुए खुली छत वाली बस में कप जीतने वाले खिलाड़ियों के साथ शामिल हुए, तो खिलाड़ी और प्रशासक के बीच की रेखाएं टूट गई थी।
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